लंदन। दुनिया में ऐसे बहुत से छोटे पारिस्थितिकी तंत्र हैं जिनका अस्तित्व खतरे में है। ऐसा ही तंत्र हैं साफ पानी की झीलें। हालिया अध्ययन बताता है कि इनकी ऑक्सीजन तेजी से कम हो रही है। इससे यहां का पूरा जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है। आमतौर पर जलवायु के मामले में झीलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के शीतोष्ण इलाकों की 393 झीलों से 1941 से लकर 2017 के नमूनों और मापन का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि इन पानी की आवासों के सतह और गहराई दोनों में ही घुली हुई ऑक्सीजन में तेजी से कमी आ रही है।
बहुत सारे खतरे शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑक्सीजन स्तरों में यह बदलाव बहुत ज्यादा प्रभावकारी है और इसके असर बहुत ही व्यापक हैं जिससे यहां का जैवभूरासायन तो प्रभावित हो रहा है यहां की मानव जनसंख्या तक प्रभावित हो रही है जो इन झीलों पर बहुत अधिक तरीके से निर्भर हैं। इसकी वजह से इन झीलों में मीथेन पैदा करने वाले बैक्टीरिया बढ़ने लगे हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उतसर्जन हो रहा है।रेनसिलियर पॉलीटेक्नीक इंस्टीट्यूट के पर्यावरण जीवविज्ञानी केविन रोज का कहना है कि सभी जटिल जीवन ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। यह जलीय जीवन के खाद्य जालों का सपोर्ट सिस्टम है। जब ऑक्सीजन कम होना शुरू होती है तो ऐसे में प्रजातियों को खो देने का खतरा तेजी से बढ़ने लगता है। रोज बताते हैं कि झीलों महासागरों की तुलना में 2.75 से 9.3 गुना ज्यादा तेजी से ऑक्सीजन गंवा रही हैं।
इस घटना का पूरे पारिसथितिकी तंत्र पर असर होगा। शोधकर्ताओं ने पानी के 45000 क्षेत्रों में तापमान और घुली हुई ऑक्सीजन के अध्ययन कर पाया कि पिछले चार दशकों से ज्यादा सतह के पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा में 5.5 प्रतिशत औसत गिरावट हो रही है।जैसे गर्म हवा झीलों की ऊपरी परत को गर्म करती है, गैसों के लिए इन गर्म पानी में घुलना और घुले रहना मुश्किल हो जाता है। वहीं उसी दौरान गहरे पानी में घुली हुई ऑक्सीजन में 18.6 प्रतिशत गिरावट का कारण कुछ और है। गहरे पानी के तापमान में बदलाव नहीं आता है, लेकिन जब सतह का पानी ज्यादा देर तक गर्म रहता है तो कम मिलने वाली पानी की परतें यहां ज्यादा देर तक रहती हैं और ऊपर से धुली ऑक्सीजन नीचे नहीं आती है इस तरह की परतें महासागरों में भी होती हैं। झीलों के चौथाई नमूनों में वैज्ञानिकों ने पाया की तापमान और ऑक्सीजन दोनों बढ़ रहा है। इस बारे में शोधकर्ता बताते हैं कि इसकी वजह इन झीलों में साइनोबैक्टीरिया का तेजी से पनपना है जो पास के खेतों और शहरी इलाके पोषण समृद्ध पानी आने के कारण पनपते हैं।
ये बैक्टीरिया अपनी ऑक्सीजन अलग से पैदा करते हैं।रेनसिलियर पॉलीटेक्निक इंस्टीट्यूट के ही एक्वेटिक इकोलॉजिस्ट स्टीफन जेन का कहना है कि झीलें पर्यावरणीय बदलाव और उनसे संबंधित बड़े खतरों की संकेतक और रक्षक की तरह होती हैं क्योंकि वे आसापास के भूभाग और वायुमंजल के संकेतों पर प्रतिक्रिया देती हैं। जेन ने बताता कि उनकी टीम ने पाया कि ये असमान लेकिन ज्यादा विविध रूप से फैल तंत्र तेजी से बदल रहे हैं जिससे पता चल रहा है कि वायुमंडलीय बदलावों ने किस हद तक हमारे पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रभावित किया है। मालूम हो कि पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग का असर हर तरफ हो रहा है। लेकिन जब भी जलवायु परिवर्तन के खतरों की बात होती है तो हमारी चिंता महासागरों के बढ़ते जलस्तर खराब होती हवा को लेकर ज्यादा होती है।
News Portal
More Stories
मुख्यमंत्री ने केंद्रीय रेल मंत्री से की मुलाकात, टनकपुर से बालाजी तक नई रेल सेवा प्रारम्भ करने का किया अनुरोध
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने की प्रधानमंत्री से मुलाकात
नए वर्ष की सभी देश व प्रदेश वासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं : विकास गर्ग